तहसीलदार हत्याकांड : अगर हो जाता तबादला तो बच जाती विजया की जान

हैदराबाद : कथित जमीन विवाद को लेकर एक व्यक्ति द्वारा महिला तहसीलदार को उनके कार्यालय में जिन्दा जलाने के मामले की जांच पुलिस ने शुरू कर दी है। गौरतलब है कि नगर के सीमावर्ती इलाका अब्दुल्लापुरमेट में सोमवार दोपहर करीब डेढ़ बजे एक व्यक्ति ने तहसीलदार पर पट्रोल छिड़क कर आग लगा दी, जिससे तहसीलदार की मौके पर मौत हो गई थी।
इस मामले में हमलावर सहित तहसीलदार को बचाने की कोशिश में उनके ड्राइवर और अटेंडर भी गंभीर रूप से जख्मी हुए हैं। घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। पुलिस ने विजयारेड्डी के शव को उस्मानिया अस्पताल में पोस्टमार्टम के बाद उनके रिश्तेदारों के हवाले कर दिया। मामले की प्राथमिक जांच से यह बात सामने आई है कि आरोपी इस बात को लेकर विजयारेड्डी से नाराज था कि उन्होंने जमीन के पट्टादारों में उसके परिवार के बदले किराएदारों के नाम शामिल किए थे।
ऐसे घटी घटना
सोमवार दोपहर करीब 1.45 बजे अब्दुल्लापुरमेट तहसीलदार कार्यालय में अचानक आहाकार मच गया और उसके तुरंत बाद एक धमाका भी हुआ। कार्यालय में मौजूद आवेदक और कर्मचारी घबराकर उधर-इधर भागने लगे। आखिर क्या हुआ इसका पता चलने से पहले ही तहसीलदार की मौत हो चुकी थी। अपनी जमीन का विवाद तहसीलदार द्वारा नहीं सुलझाने से गुस्साए एक किसान कूरा सुरेश हत्यारा बन गया।
तहसीलदार विजया रेड्डी की हत्या करने के इरादे से वह पक्की योजना के साथ एक डिब्बे में पट्रोल लेकर कार्यालय के तहसीलदार के कमरे में घुस गया। इसके तुरंत बाद उसने तहसीलदार पर पेट्रोल डालकर उन्हें आग लगा दी और देखते ही देखते तहसीलदार आग में जिन्दा जल गई।
घटना में मरने वाले कौन है कुछ देर तक इसका पता नहीं चलने से वहां के कर्मचारी भी असमंजस में थे। जब उन्होंने तहसीलदार के कमरे के पिछले हिस्से में लगी खिड़की से देखा तो वहां विजयारेड्डी नहीं थी। उन्होंने मैडम...मैडम कहकर आवाज लगाई, लेकिन भीतर से कोई आवाज नहीं आई।
इस बीच, कमरे में पहुंचे एक कर्मचारी ने विजयारेड्डी के हाथ में घड़ी देखकर उन्हें पहचान ली। उन्होंने तहसीलदार के जिन्दा जल जाने की खबर पुलिस को दी गई और पुलिस मौके पर पहुंच गई। तहसीलदार को बचाने की कोशिश में उनके ड्राइवर गुरुनाथ 84 फीसदी और अटेंडर चंद्रय्या 40 से 50 फीसदी जल गया। दोनों को कंचनबाग स्थित डीआरडीएल अस्पताल भेज दिया गया। हमले में बुरी तरह से झुलसे आरोपी सुरेश को पहले एक निजी अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उसकी हालत बिगड़ते देख उस्मानिया अस्पताल भेज दिया गया।
दूसरी तरफ, तहसीलदार विजयारेड्डी के शव को उस्मानिया अस्पताल में पोस्टमार्टम के बाद उनके परिवार को सौंप दिया गया।
तबादला हुआ होता तो बच गई होती जान !
तहसीलदार विजयारेड्डी अब्दुल्लापुरमेट में अक्टूबर 2016 से सेवारत थी। जिलों के पुनर्गठन के वक्त नए मंडल बने अब्दुल्लापुरमेट में उन्हें पोस्टिंग दी गई। यहां काम करते तीन साल से अधिक समय होने से विजयारेड्डी ने लोकसभा चुनाव के बाद सरकार से अपने तबादले की अपील की थी, लेकिन जल्द ही म्यूनिसिपल चुनाव होने के मद्देनजर तबादले को लेकर सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया।
10 दिन पहले भी विजयारेड्डी दंपती ने मंत्री सबिता इंद्रारेड्डी से भेंट कर अपने तबादले की अपील की थी। कार्यालय के अन्य कर्मचारियों का कहना था कि विजयारेड्डी का अगर तबादला हुआ होता तो आज वह इस तरह हत्या का शिकार नहीं हुई होती।
बड़ा धमाका...
कार्यालय में सीनियर असिस्टेंट के रूप में कार्यरत सुनिता के बताया कि दोपहर 1.45 बजे वह फाइल लेकर मैडम के पास गई थी। ठीक उसके पांच मिनट के भीतर एक बड़ा धमाका हुआ। तुरंत सभी मैडम की चैंबर की तरफ दौड़े। वहां चीख-पुकार और धुएं की वजह से क्या हो रहा कुछ पता नहीं चला। पहले उन्होंने समझा कि किसी ने आत्महत्या की कोशिश की होगी, लेकिन जब हमारे मैडम...मैडम कहकर आवाज लगाने पर मैडम के हाथ उठाने से हम पूरा मामला समझ गए।
धमाके से टूटे शीशे
कार्यालय में आर.आई. महेश ने बताया कि दोपहर 1.50 बजे आवेदक पहुंचे। तभी वहां पहुंची मैडम ने कुछ लोगों से बात की और हमें कुछ काम भी सौंपे। हम दिए हुए काम करने के लिए अपने-अपने चैंबर में चले गए, लेकिन इसके तुरंत बाद एक धमाका होने से कार्यालय की खिड़कियों में लगे शीशे टूट गए। जब हम दौड़कर मैडम के चैंबर में पहुंचे तो मैडम जलती हुई दिखीं। हमने तुरंत कार्पेट लाकर आग को बुझा दिया, लेकिन मैडम को बचा नहीं सके।
कौन है सुरेश... ऐसा क्यों किया ?
आरोपी सुरेश एक किसान है और वह बाचारम गांव का रहने वाला है। इस ग्राम पंचायत की परिधि में सर्वे नंबर 73 से 101 तक फैली करीब 412 एकड़ जमीन पर सुरेश का परिवार सहित गौरेल्ली गांव के रहने वाले 53 लोग पिछले 50 वर्षों से खेती कर रहे हैं। वास्तव में यह जमीन उनकी नहीं है। इसमें से 280 एकड़ जमीन राजा आनंद की है और 1980 में राजा आनंद के महाराष्ट्र चले जाने के बाद ये सभी सादा बाइनामा के तहत राजा आनंद से जमीन खरीदने का दावा कर रहे हैं।
1980 से इस जमीन को लेकर रंगारेड्डी जिला कोर्ट में मामले भी विचाराधीन हैं। परंतु 1998 में उन्हें 1-बी के तहत रिकॉर्ड ऑफ राइट्स(आरओआर) मिलने के साथ-साथ जमीन की पट्टा पुस्तक भी मंजूर होने का दावा कर रहे हैं, लेकिन 2004 में इस जमीन पर अपना हक जताते हुए उसी गांव के शफीक, हबीब सहित कुछ अन्य लोगों ने कोर्ट में केस फाइल किया था और इसको लेकर भी विवाद चल रहा है।
इसी क्रम में सुरेश के रिश्तेदार आरोप लगा रहे हैं कि तहसीलदार विजया रेड्डी ने विवादास्पद 130 एकड़ जमीन के पट्टे दूसरों के नाम जारी किए हैं। सुरेश 130 एकड़ में अपने दादा से विरासत में मिलने वाली 2 एकड़ जमीन भी शामिल होने का दावा करते हुए विजयारेड्डी के फैसले पर आपत्ति व्यक्त कर रहा था। गांव वालों के मुताबिक इसी बात को लेकर सुरेश पिछले एक साल से विजयारेड्डी के कार्यालय के चक्कर लगा रहा था। उनका कहना है कि अपनी कथित जमीन विजया रेड्डी द्वारा किसी दूसरे को सौंपे जाने से गुस्साए सुरेश ने इस घटना को अंजाम दिया होगा।
मेरा बेटा निर्दोष है
आरोपी सुरेश की मां कूरा पद्मा ने कहा है कि उसका बेटा मासूम है और उसके ऐसे करने की वजह का पता नहीं चल रहा है। उसने पहले कभी उसने किसी से झगड़ा तक नहीं किया और उसने कुछ वर्षों तक खेती भी की है। अब ऑटो, रियल इस्टेट के साथ खेती भी कर रहा है। उसके दो बच्चे मनस्वी (7) और श्रीचरण(5) हैं। अगर उसे कुछ होगा तो उसके क्या होगा और उसके नाती-नवसे का क्या होगा?
दिमागी हालत ठीक नहीं...
आरोपी सुरेश के ताऊ कूरा दुर्गय्या ने कहा कि बचपन से सुरेश शांत स्वभाव का व्यक्ति है, लेकिन पिछले कुछ समय से उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं चल रही है। इस जमीन विवाद पर सुरेश के पिता अभी भी अदालती लड़ाई लड़ रहे हैं और सुरेश ने अनावश्यक दूसरों के मामले में हस्तक्षेप किया है।