विश्व युद्ध के जमाने से है इस गांव के लोगों में सैनिक बनने का जज्बा, आंध्र प्रदेश की 'वॉरियर फैक्ट्री' आज भी सरहद पर जाते हैं सिपाही

गजपति वंश के राजा ने बसाया था गांव
गांव में बना है यहां के शहीदों का स्मारक
हैदराबाद : पश्चिम गोदावरी (West Godavari) जिले में बसे हुए एक गांव को मिलिट्री माधवराम (Militrry Madhavaram) के नाम से जाना जाता है। इस गांव का नाम मिलिट्री के नाम पर पड़ने की एक खास वजह है इसका सेना से 300 साल पुराना रिश्ता है। आइये आपको बताते हैं कि मिलिट्री माधवराम गांव में ऐसा क्या है कि यहां लड़किया सिर्फ आर्मी मैन से शादी करना चाहती हैं।
गांव की खासियत के कारण ही सिनेमा जगत भी इस पर फिल्म बनाने को मजबूर हो गया। इस गांव को लेकर एक डॉक्यूमेंट्री भी बन चुकी है। मिलिट्री माधवराम कोई बसा हुआ गांव नहीं है। जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है। मिलिट्री माधवराम में हर परिवार सेना से बेहद प्यार करता है। इसी बेहद प्यार का ही अंजाम है कि यहां दशकों से हर घर से कोई न कोई सदस्य सेना में भर्ती होता है।
17वीं शताब्दी में बसा माधवराम गांव
ये आंध्र प्रदेश राज्य का ऐसा गांव है जहां हर घर में कोई ना कोई सदस्य सेना का सदस्य है, लेकिन इस गांव के लोगों का सेना में भर्ती होने के प्रति जुनून कोई आज का नहीं है। इस जुनून और देशभक्ति का 300 साल पुराना नाता है। 17वीं शताब्दी में इस गांव पर गजपति राजा का शासन था, जब राजा को दुश्मनों पर जीत के लिए सेना को मजबूत करने की जरूरत थी। उस समय इस गांव से लोगों ने सेना में भर्ती होकर अपने राजा का साथ दिया था।
गजपति वंश के राजा पशुपति माधव वर्मा ब्रह्मा दक्कन और ओडिशा क्षेत्र पर राज करते थे। अपने शासनकाल में उन्होंने माधवारम गांव से 6 किलोमीटर दूर में ओरूगोलू गांव में दुश्मनों से बचने के लिए एक किले का निर्माण कराया था। राजा माधव वर्मा के नाम से ही इस गांव का नाम माधवरम पड़ा। उस समय गांव के युवाओं ने सेना में भाग लिया और महत्वपूर्ण युद्धों में भाग लिया था। तब से यहां के हर घर के युवाओं के सेना में भर्ती होने का सिलसिला जारी है।
विश्व युद्ध में शहीद हुए इस गांव के दर्जन सैनिक
सैंकड़ों सालों से मिलिट्री माधवराम गावं के पुरुष सेना में भर्ती होते रहे हैं। न सिर्फ इस गांव से आज की भारतीय सेना में यहां के कई जवान भर्ती हुए हैं, बल्कि विश्व युद्ध में भी यहां के पुरुषों ने सेना में अपना योगदान दिया था।
ये दूर-दराज इलाके का एक ऐसी जगह है जहां से 90 सैनिक प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हुए थे और द्वितीय विश्व युद्ध में, ये आंकड़ा 1,110 तक था। एक दर्जन सैनिकों ने अपनी जान दे दी। सैन्य माधवराम के जवानों ने बाद में चीन और पाकिस्तान युद्धों में भाग लिया। आज जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान सीमा पर तैनात 250 सैनिक यहीं से हैं। ग्रामीणों ने यहां नई दिल्ली के अमर जवान ज्योति की तर्ज पर सैनिकों के लिए एक स्मारक बनाया है।
ताड़ेपल्लीगुड़ेम (Tadepalligudem) मंडल में स्थित गांव के निवासियों को उम्मीद है कि परिवहन, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के साथ उनकी समस्याओं का समाधान होगा। यहां के गांव वालों के लिए सबसे पास में Tadepalligudem रेलवे स्टेशन है।
ये गांव सभी देशभक्तों और आज की युवा पीढ़ी को सेना में शामिल होने के लिए प्रेरित करता है। यहां लड़कियां आर्मी मैन से ही शादी करना चाहती हैं। तेलुगु निर्देशक क्रिश ने मिलिट्री माधवराम के इतिहास को इतना दिलचस्प पाया कि उन्होंने अपनी कहानी के आधार पर राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म कांची बनाई। पूर्व-सैनिक, उरिका सीतारमैया की बेटी, श्री रामनान ने समाधवराम पर एक डॉक्यूमेंट्री भी बनायी, जो यूट्यूब पर उपलब्ध है।