कोरोना काल में परेशान हो रहे बच्चे तो संवेदना टोल फ्री नंबर 1800-1212-830 पर करें कॉल

कोरोना काल में बच्चों की बोरियत मिटाने का तरीका
अभिभावकों के लिए जरूरी सुझाव
स्वयंसेवी संस्थाओं की तरफ से अहम प्रयास
भोपाल: कोरोना वायरस संक्रमण के इस दौर में सबसे अधिक परेशानी घर में बंद बच्चों को उठानी पड़ रही है। खेल कूद की पाबंदी, अभिभावक कहीं बाहर घुमाने नहीं ले जा रहे। यहां तक कि बोरियत मिटाने के लिए घर में होने वाली हुल्लड़बाजियों पर भी टोका टोकी होती है। इन परिस्थितियों के मद्देनजर कई स्वयंसेवी संस्थाओं ने बच्चों के लिए सकारात्मक कोशिशें शुरू कर दी है। वहीं बच्चों को संभालने की पहली जिम्मेदारी अभिभावकों की ही बनती है। लिहाजा हम यहां कुछ सुझाव दे रहे हैं जिसको अमल में लाकर आप बच्चों की मदद कर सकते हैं
सबसे पहली बात ये कि कोरोना काल के इस मुश्किल समय में बच्चों की दिनचर्या निश्चित होनी चाहिए। पढने का समय, खेलने टाइम, ऑनलाइन दिनचर्या और झपकी समय (Nap time) भी इसमें शामिल हों। बच्चों को इस दौरान कुछ नया सीखने और करने के लिए प्रेरित करें। भले वो किचन से जुड़ा हो या फिर कौई और क्रियेटिव वर्क। योजनाबद्ध तरीके से बच्चों को घर के काम में शामिल करें ताकि उन्हें माहौल बोझिल महसूस न हो।
बच्चों के सवाल पर न झुंझलाएं
स्कूलों के बंद होने के चलते बच्चों के पास पर्याप्त समय होता है। खाली दिमाग बच्चों के मन में कई सवाल उपजते हैं, जिसके पूछने पर मां बाप अक्सर झुंझला जाते हैं। हमारी सलाह है कि बच्चों की भावनाओं को समझें और उन्हें जवाब देने में पूरा वक्त लगाएं। साथ ही बच्चों को खुलकर भावनाएं व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करते रहें। इस मुश्किल घड़ी में बच्चों को हैंडल करते समय आपको धैर्य और समझदारी दिखानी होगी। बच्चों के सवालों का जवाब देते हुए ध्यान रखें कि सोशल मीडिया पर चलने वाली फर्जी खबरों से उन्हें पूरी तरह दूर रखा जाय। माता पिता स्कूल की ऑनलाइन क्लास के बाद बच्चों को ऑफलाइन पढ़ाने में दिचलस्पी दिखा सकते हैं। ऑनलाइन की तकनीकी मुश्किलों के चलते जो बातें बच्चे समझ नहीं पाते उसे माता पिता क्लियर कर सकते हैं।
ऑनलाइन बच्चों की सुरक्षा करें
कोरोना काल में बच्चे ऑनलाइन गैजेट्स का खूब इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे में उनकी गोपनीयता और सुरक्षा को भी खतरा पहुंच सकता है। लिहाजा ऐसे उपकरणों को नेविगेट करने के लिए माता पिता को उचित उपाय करने होंगे। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर क्लासेस के अलावा बच्चों को प्रोत्साहित करें कि वो बाकी दोस्तों और रिश्तेदारों से भी हल्के फुल्के बातचीत में खुद को शामिल करें।
बच्चों के लिए बेहद कठिन समय
माना जाता है कि कोरोना संक्रमण के कारण सबसे ज्यादा कठिन दौर से अगर किसी को गुजरना पड़ा है तो वे हैं बच्चे। वजह यह कि स्कूल बंद हैं और उनके सामूहिक तौर पर खेलने कूदने पर पाबंदी है। इस बोरियत भरे दौर से बच्चों के उबारने के लिए मध्यप्रदेश की बच्चों से जुड़ी संस्थाओं ने कई प्रयास किए हैं। यही कारण रहा है कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी इन प्रयासों को सराहा है।
कोरोना के चलते बच्चों को मानसिक समस्याओं के दौर से गुजरना पड़ रहा है। वे इस दौर में खुले पंछी की तरह न होकर घरों में बंद रहने को मजबूर हैं। बच्चों में सृजनात्मकता आए और उनकी बोरियत कम हो, इसके लिए तमाम संस्थाओं ने कई कार्यक्रमों का ऑनलाइन आयोजन किया। बच्चों के लिए काम करने वाले संस्था चाइल्ड राइट ऑब्जर्वेटरी और यूनिसेफ ने ऑन लाइन कार्यक्रम किए।
इस तरह कम कर सकते हैं बच्चों की बोरियत
बीते सात माह से ऑन लाइन कहानियां सुनाने का दौर चल रहा है, कविताएं लिखने के लिए बच्चो को प्रोत्साहित किया जा रहा है। रंगोली बनाने की प्रतियोगिता कराई जा रही हैं। इसके साथ अनेक ऐसे कार्यक्रम किए जा रहे हैं, जिससे बच्चों की बोरियत कम हो। चाइल्ड राइट ऑब्जर्वेटरी की प्रमुख और पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच का मानना है कि कोरोना के कारण बच्चों की गतिविधियां थमी हुई हैं, बच्चों में बोरियत बढ़ी है, मगर ऑनलाइन कार्यक्रमों ने बच्चों की बोरियत को तो कम किया ही है। साथ में उनमें सृजन क्षमता का विकास भी किया है।
एक तरफ जहां बच्चों की बोरियत मिटाने के प्रयास जारी है तो दूसरी ओर उनकी समस्याओं को निपटाने के बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने प्रयास किए हैं। आयोग ने 'संवेदना' नाम से टोलफ्री टेली काउंसलिंग का टोल फ्री नंबर 1800-1212-830 जारी किया गया है। इस पर बच्चें कॉल कर विशेषज्ञों से बात कर अपनी समस्या का समाधान पा सकते हैं।
संस्था के काम को सुप्रीम कोर्ट ने सराहा
कोविड-19 के दौरान बाल देखरेख संस्थानों में बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए किए गए विशेष प्रयासों को सर्वोच्च न्यायालय ने सराहना की है। न्यायमूर्ति रविंद्र भट्ट ने मध्यप्रदेश में प्रशिक्षित परामर्शदाताओं द्वारा कोविड के दौरान बच्चों को परामर्श के माध्यम से मानसिक रूप से स्वस्थ रखने, प्रत्येक बच्चे की व्यक्तिगत देखरेख योजना तैयार करने तथा उनकी रचनात्मकता में वृद्धि के प्रयासों को सराहा है।
उन्होंने देश के अन्य राज्यों में भी मध्यप्रदेश के उत्कृष्ट कार्यो का अनुकरण करते हुए देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों को परामर्श प्रदान करने और परामर्शदाता का पूल तैयार करने के निर्देश दिए।