पत्नी से बेपनाह मोहब्बत करते थे बालासाहब ठाकरे, उनके लाइफ के अनसुने किस्से

महाराष्ट्र की राजनीति में अलग दबदबा रखने वाले शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे की आज डेथ एनिवर्सरी है। उनका पूरा नाम बाल केशव ठाकरे है। उनके इस नाम के पीछे एक वजह है। दरअसल ठाकरे का मूल उपनाम ठाकरे है। उनके पिता ने हमेशा उनके उपनाम के रूप में 'ठाकरे' का इस्तेमाल किया। यही नहीं बाल ठाकरे ने अपने उपनाम की स्पेलिंग तक बदल दी, क्योंकि वह विलियम मेकपीस ठाकरे, जो कि प्रसिद्ध ब्रिटिश लेखक थे, के प्रशंसक थे।
उनका जन्म महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। हालांकि उनका मध्य प्रदेश से भी गहरा नाता रहा है। दरअसल बाल ठाकरे के पिता प्रबोधनकार ठाकरे मध्य प्रदेश के देवास में पढ़ने गए थे। वे देवास के विक्टोरिया हाईस्कूल में दो साल पढ़े। उन्होंने स्कूल के प्राचार्य गंगाधर नारायण शास्त्री को धन्यवाद दिया था और कहा था कि उनकी वजह से उन्हें पढ़ने में रुचि जगी। सीताराम केशव ठाकरे उर्फ प्रबोधनकार ठाकरे 1901 व 1902 में देवास में थे।
बालासाहब के दिल में मराठी लोगों के लिए एक विशेष स्थान था। वह महाराष्ट्र की आवाज थे, और अक्सर अपने लोगों के लिए खड़े रहते थे। उन्होंने 1966 में 'शिव सेना' नाम की एक पार्टी की स्थापना की। 'शिव सेना बनाने के पीछे उनका उद्देश्य महाराष्ट्र में रहने वाले लोगों के लिए एक आवाज़ बनाना भी था। आइए उनके जीवन से जुड़े कुछ तथ्यों पर नजर डालते हैं।

► बाल ठाकरे ने अपने करियर की शुरुआत एक कार्टूनिस्ट के रूप में की थी। वह फ्री प्रेस जर्नल के लिए कार्टून बनाते थे। उनके राजनीतिक कार्टून द टाइम्स ऑफ इंडिया ’के रविवार संस्करण में भी प्रकाशित हुए थे। अपने कार्टून में, ठाकरे मुंबई में बढ़ती गैर-मैराठियों की संख्या को लेकर से खासी नाराजगी दिखाते थे। उन्होंने 1960 में एक मर्मिक ’नाम से अपना कार्टून साप्ताहिक शुरू किया।

► एक बार अमिताभ बच्चन कुली के सेट पर हुई दुर्घटना के बाद, हॉस्पिटल में एडमिट थे। तब बाल ठाकरे बिग बी से मुलाकात करने खुद अस्पताल पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने खुद का बनाया एक कार्टून बच्चन को भेंट किया था। यह कार्टून यमराज का था। उन्होंने कहा कि आप ने 'यमराज को हराया'।

► ठाकरे एडोल्फ हिटलर को एक कलाकार मानते थे, क्योंकि हिटलर एक चित्रकार भी था। यहीे नहीं उन्होंने हिटलर की प्रशंसा भी की थी कि हिटलर के पास पूरी भीड़ और पूरे राष्ट्र को अपने साथ रखने का जादू था। हालांकि उन्होंने उसके बाकी के जीवन से जुड़ी बातों का खंडन किया था।

► बालासाहब ठाकरे शिरडी में साईंबाबा के सिंहासन के लिए 22 करोड़ खर्च करने के खिलाफ थे। उनके इस बात की एक मराठी दैनिक में खबर भी छपी थी। और कहा गया था कि चांदी के सिंहासन पर बैठने वाले को साईबाबा के सिंहासन को लेकर सवाल उठाना शोभा नहीं देता। इसके बाद शिवसेना ने चांदी का परत वाला लकड़ी का एक सिंहासन अखबार के कार्यालय को भेजकर इसे स्वीकार करने की मांग की थी। ठाकरे का मानना था कि पैसे का उपयोग महारष्ट्र के गरीब किसानों के लिए होना चाहिए। उन्होंने उन गरीबों के लिए एंबुलेंस सेवा शुरू की थी जो एबुंलेंस सेवा अफोर्ड नहीं कर सकते थे।

►बालासाहब पर एक बार चुनाव आयोग ने 1999 में उन पर मताधिकार का उपयोग करने और चुनाव लड़ने पर 6 साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया था। दरअसल धर्म के नाम वोट मांगने और चुनाव में मालप्रैक्टिंसिंग के आरोप में ये बैन लगाया था।

►ठाकरे की पत्नी मीना ठाकरे का 1995 में निधन हो गया। उन्होंने अपने इंटरव्यू में अक्सर उनके बारे में बात की। उन्होंने अपना लॉकेट भी दिखाया था जिसमें उनकी पत्नी की तस्वीर है।