बिहार में तेजस्वी की हार से महाराष्ट्र में शिवसेना को क्यों हो रहा दर्द, जानिए बड़े भाई-छोटे भाई वाले दर्द की दास्तां...

तेजस्वी की हार पर नहीं हो रहा था भरोसा
छोटे भाई-बड़े भाई की रणनीति
नीतीश का भी दुखा है दिल
मुंबई: क्या आप बता सकते हैं कि बिहार चुनाव परिणाम आने के बाद सबसे ज्यादा दर्द किसे हो रहा होगा? यकीनन आप तेजस्वी यादव और उनके पिता लालू यादव का नाम लेंगे। लेकिन अगर हम आपसे यह कहें कि तेजस्वी के चुनाव हारने का सबसे ज्यादा दर्द महाराष्ट्र की शिवसेना सरकार को हो रहा है तो आप क्या कहेंगे? यकीन न हो तो यहां एक नजर डालिए...
बिहार के चुनाव परिणाम इस बार यकीनन हम सभी के लिए चौंकाने वाले थे। जैसे ही यह साफ हो गया कि राष्ट्रीय जनता दल यह चुनाव हार चुकी है तो तेजस्वी से भी पहले इस हार का झटका मानो शिवसेना को लग गया। राजद की हार की खबर पर शिवसेना यकीन ही नहीं कर पा रही थी। परिणाम आने के बाद शिवसेना की त्वरित प्रतिक्रिया यह थी- तेजस्वी यादव हार गए, ऐसा हम मानने को तैयार नहीं हैं।
तेजस्वी की हार पर नहीं हो रहा था भरोसा
खास यह है कि एक ओर जहां शिवसेना को तेजस्वी की हार पर भरोसा नहीं हो रहा था, वहीं दूसरी ओर नीतीश कुमार के पुन: मुख्यमंत्री बनने का श्रेय भी वह खुद लेना चाह रही है। शिवसेना ने कहा कि पिछले वर्ष इन्हीं दिनों महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद यदि उसने भारतीय जनता पार्टी को झटका देकर कांग्रेस-राकांपा के साथ सरकार न बना ली होती, तो भाजपा बिहार में नीतीश कुमार को जदयू की सीटें कम आने पर भी मुख्यमंत्री बनाने का वादा नहीं करती।
छोटे भाई-बड़े भाई की रणनीति
नीतीश के बहाने शिवसेना एक बार फिर यह बताने की कोशिश कर रही है कि भाजपा नेतृत्व ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले उसके साथ किया गया वादा नहीं निभाया। निश्चित रूप से आज जदयू को बिहार में भाजपा से काफी कम सीटें पाने का दुख होगा। बीते दिनों को याद करें तो यह कहा जा सकता है कि वास्तव में यही दुख 2014 के बाद से महाराष्ट्र में शिवसेना को भी सालता आ रहा है। छोटे भाई-बड़े भाई की जो बात आज बिहार में होती दिख रही है, वही 2014 में लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र में शुरू हो गई थी।
नीतीश का भी दुखा है दिल
महाराष्ट्र ही नहीं, बिहार की राजनीति पर भी गौर करें तो हम पाएंगे कि नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी की कभी भी ट्यूनिंग ऐसी नहीं रही जिससे ऐसा प्रतीत हो कि दोनों के बीच सबकुछ ठीक है। कभी बिहार को स्पेशल पैकेज देने की बात रही हो या फिर कैबिनेट में बिहार के किसी भी नेता या मंत्री को जगह देने की बात, नीतीश कुमार ने हमेशा ही पीएम मोदी के खिलाफ अपनी मौन असहमति जताई है और कुछ मामलों में कई बार खुलकर भी बोला है। यानी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि महाराष्ट्र की ही तरह बिहार में भी नीतीश और बीजेपी के बीच छोटे भाई-बड़े भाई वाली मानसिकता हमेशा से ही बनी रही है। हालांकि इस बार नीतीश मीडिया के सभी सवाल के जवाब में एनडीए की बैठक में तय होगा कहकर किसी भी तरह का कमेंट करने से बचते दिख रहे हैं।
शिवसेना ने जीत का श्रेय पीएम मोदी की लोकप्रियता को देने से किया इंकार
भाजपा के साथ गठबंधन करके लोकसभा चुनाव लड़ने और भारी सफलता हासिल करने के बावजूद चुनाव के तुरंत बाद से ही शिवसेना ने इस जीत का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रव्यापी लोकप्रियता को देने से इंकार कर दिया था, क्योंकि छह माह बाद ही महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने थे। विधानसभा चुनाव आते-आते शिवसेना-भाजपा का लगभग तीन दशक पुराना गठबंधन टूट गया था। दोनों दल अलग-अलग चुनाव लड़े और शिवसेना भाजपा से करीब आधे पर सिमट गई। यहीं से महाराष्ट्र में बड़ा भाई होने का उसका भ्रम भी टूट गया।
मन में आई कड़वाहट दूर न हो सकी
हालांकि, फिर थोड़ा उससे पीछे चलें, तो देवेंद्र फड़नवीस सरकार बनने के करीब एक माह बाद शिवसेना सरकार में शामिल तो हुई, लेकिन उसके मन में आई कड़वाहट दूर नहीं हो सकी। लेकिन उसे अहसास हो चुका था कि चुनाव मैदान में अकेले उतरना फायदे का सौदा नहीं हो सकता।
शिवसेना ने मारी पलटी
यही वजह रही कि लोकसभा चुनाव से पहले ही उसने भाजपा के साथ चुनावी गठबंधन करना बेहतर समझा, लेकिन चुनाव परिणाम आते ही शिवसेना ने पलटी मारी और भाजपा का साथ छोड़ उसी कांग्रेस-राकांपा का हाथ थाम लिया, जिसके विरुद्ध उसने चुनाव लड़ा था। शिवसेना अपने इस घात को छिपाने के लिए बार-बार कहती आ रही है कि भाजपा नेताओं ने उसके साथ किया गया वायदा नहीं निभाया। शिवसेना इसके लिए लोकसभा चुनाव से पहले मार्च 2019 में उद्धव ठाकरे एवं तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बीच हुई एक बैठक की ओर इशारा करते हुए यह सब कह रही थी।