तनिष्क मामला: हिंदू मुस्लिम एकता, मार्केट, शादी, कल्चर या फिर तनिष्क... किसका विरोध है यह?

पिछले दिनों टाटा ग्रुप की जानी मानी ज्वेलर्स कंपनी तनिष्क का जमकर विरोध किया गया। आज एक बार फिर ट्रोलर्स के निशाने पर था #Tanishq । ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा था #TataSackMansoorAli । वह भी महज एक विज्ञापन को लेकर। दुखद यह है कि विज्ञापन हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल बन सकता था लेकिन उसे बना दिया गया हिंदू मुस्लिम विरोध की मिसाल। ऐसे में सवाल यह उठता है कि सोशल मीडिया पर आखिर इस विज्ञापन का इतना विरोध किया क्यों गया? क्या इसके पीछे हिंदू मुस्लिम एकता का विरोध करने की मंशा थी? या फिर मार्केट, शादी, भारतीय संस्कृति, या सीधे तनिष्क ही निशाने पर था?
सच तो यह है कि हम सभी की यह जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने देश की गंगा जमुनी संस्कृति को आगे बढ़ाएं। हिंदू मुस्लिम एकता की जो मिसाल सदियों से हमारे यहां देखने को मिलती रही है, वह आगे भी अनवरत जारी रहे। पर हो इसके ठीक उलट रहा है। हमेशा से ही राजनीतिक धरातल पर अक्सर ऐसे मामलों को अलग एंगल से उठाया जाता रहा है। इसके पीछे मंशा होती है, अंग्रेजों की भांति फूट डालो, राज करो की नीति।
देश में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। लेकिन दुख इस बात का है कि कोरोना काल ने सोशल मीडिया को काफी मजबूत बना दिया है और इस प्लेटफॉर्म ने कुछ अच्छे काम किए हैं तो कई गलत बातों को भी बढ़ावा दिया है। इस बार तनिष्क के मामले में भी ऐसा ही कुछ हुआ है। अगर हम यह मान भी लें कि तनिष्क ने यह वीडियो अपनी कंपनी के फायदे को ध्यान में रखकर बनाई थी, तब भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस विज्ञापन को तैयार करने के क्रम में उसने जिस मुद्दे को उठाया, वह तारीफ की हकदार थी, ट्रोलिंग की नहीं।
हालांकि हुआ इसके ठीक उलट। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी संस्कृति हिंदू या मुस्लिम नहीं है बल्कि गंगा जमुनी यानी हिंदू मुस्लिम एकता ही है। ऐसे में अगर हम अपनी संस्कृति को बचाने के उद्देश्य से ऐसे मामलों को ट्रोल कर रहे हैं तो यह हमारी छोटी सोच को दर्शाता है।
काफी हद तक यह कहना भी गलत न होगा कि बीजेपी के राज में पिछले कुछ समय से ऐसे मामले ज्यादा देखने को मिल रहे हैं। हालांकि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि इस बार लोकसभा चुनाव में जीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने खुद ही यह नारा दिया था— सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास। हालात अगर ऐसे ही रहे तो इस नारे के तीनों पहलू गर्त में चले जाएंगे, वह भी बेहद जल्द।
इस दौरान यह भी कहना होगा कि टाटा ग्रुप अगर एडलमैन की 2018 की ब्रांड स्टडी को गंभीरता से लेता तो शायद अपना यह विज्ञापन हटाता नहीं। सही तो यह होता कि वाकई में वह अपना यह विज्ञापन हटाता नहीं। स्टडी में साफ किया गया था कि विश्व स्तर पर करीब 64 फीसदी उपभोक्ता खरीदारी करते समय यह जरूर देखते हैं कि किसी ब्रांड की सामाजिक या राजनीतिक सोच क्या है? पर टाटा ग्रुप ने सोशल मीडिया पर गाली-गलौज से डरकर उस विज्ञापन को हटा दिया है, जो धार्मिक सौहार्द की अच्छी मिसाल साबित हो सकता था।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर यह विरोध है किसका? हिंदू मुस्लिम एकता, मार्केट, शादी, कल्चर या फिर तनिष्क... किसका विरोध है यह? मेरे ख्याल से बाजार और शादी का विरोध तो यह कतई भी नहीं हो सकता। हां, हो सकता है तो बस हिंदू मुस्लिम एकता, कल्चर और तनिष्क ब्रांड का हो सकता है। ज्वेलरी की दुनिया में तनिष्क का इतिहास बताता है कि कम समय में ही उसने काफी विकास कर लिया था। लोग तनिष्क ब्रांड को सराह भी खूब रहे थे। संभवत: यह इस ब्रांड का विरोध भी हो सकता है।
हालांकि, मेरे ख्याल से खुद को तथाकथित भारतीय संस्कृति के पैरोकार बताने वाले हुडदंगियों की भी यह चाल हो सकती है ताकि देश में हिंदू मुस्लिम एकता कहीं भी नजर न आए और भारत की पहचान केवल एक हिंदू राष्ट्र की हो जाए, गंगा जमुनी संस्कृति और हिंदू मुस्लिम एकता वाली नहीं। बहरहाल, यह सोच मेरी है। बेशक आपकी सोच मुझसे अलग हो सकती है। चाहें तो आप हमें यह बता सकते हैं कि आखिर इसके पीछे मंशा थी क्या?