तो क्या वेद व्यास के श्राप से विलुप्त हो गयीं थी सरस्वती नदी, जानिए क्या है इस नदी का रहस्य ?

विलुप्त हो गयी थी सरस्वती नदी
सरस्वती नदी पर हुए कई शोध
नई दिल्ली : ऐसी मान्यता है कि सरस्वती नदी को ऋषि वेद व्यास ने श्राप दिया था, जिसके चलते वो अपने उद्गम स्थल से कुछ ही दूर जा कर विलुप्त हो गयीं थी। जिसकी वजह ये थी कि, वेद व्यास महाभारत की रचना कर रहे थे, उस वक्त सरस्वती नदी के शोर से उन्हे परेशानी हो रही थी। व्यास जी बोलते जा रहे थे और गणेश जी उसे लिखते जा रहे थे। जिस जगह पर व्यास जी और गणेश जी महाभारत की रचना कर रहे थे वह गुफा आज भी मौजूद है।
उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित देश के अंतिम गांव माणा को सरस्वती नदी का उद्गम स्थल कहा जाता है। कहा जाता है कि यहीं पर सरस्वती नदी का उद्गम होता है। सरस्वती नदी अपने उद्गम स्थल से कुछ ही दूरी पर गायब हो जाती हैं। सरस्वती नदी को रहस्य को जानने की आज भी लोगों में उत्सुकता है।
प्रयागराज के त्रिवेणी संगम को भी गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का मिलन स्थल कहा जाता है। लेकिन यहां भी सरस्वती नदी को अदृश्य रूप की ही मान्यता मिली हुई है। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि, यहां मिलन स्थल पर धरती के नीचे से सरस्वती नदी की धारा मिलती है।
सरस्वती नदी को लेकर कई शोध हुए, वैज्ञानिक समय-समय पर अलग-अलग राय देते रह। लेकिन वास्तविक सत्य जानने की जिज्ञासा लोगों में बरकरार रही। वैज्ञानिकों का कहना है कि उस इलाके में भौगोलिक परिवर्तन या फिर भूकंप के चलते, धरती के नीचे कई परिवर्तन हुए होंगे, जिससे सरस्वती नदी के पानी के धारा की दिशा बदल गयी होगी। लेकिन ठोस आधार पर कुछ भी नहीं कहा जा सका।
सरस्वती पर क्या है शोधकर्ताओं की राय ?
मानव सभ्यता की अगर बात करें तो इसकी शुरुआत मोहन जोदाड़ो और हड़प्पा की संस्कृति से जोड़ कर देखी जाती है। लेकिन सरस्वती इससे भी कहीं ज्यादा पुरानी है। फ्रांस के शोधकर्ता माइकल डैनिनो के मुताबिक सरस्वती एक बहुत बड़ी नदी थी। उन्होने संभावना जताई है कि यह हड़प्पा संस्कृति के 4000 पहले सूख गयी। उन्होने कहा है कि इसके सूखने के पीछे कई भौगोलिक कारण हो सकते हैं।
सरस्वती नदी पर हुए शोध से हुआ अहम खुलासा
नेचर वेबसाइट में छपे शोध के मुताबिक करीब छह साल के शोध के बाद ये निष्कर्ष निकाला गया कि सरस्वती नदी हिमालय से निकली थी और गुजरात के कच्छ के रण में गायब हो गयी। नेचर की शोध रिपोर्ट में प्रोफेसर चम्याल और उनकी टीम ने कहा है कि, 14 जुलाई 2017 को वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि, करीब 10 हजार ईसा पूर्व सरस्वती नदी हिमालय से निकल कर गुजरात के कच्छ रण तक बहा करती थी। शोध में कहा गया है कि,सरस्वती नदी पर जानकारी जुटाने के लिये टीम ने कच्छ के रण में 60 फीट गहरा ड्रिल किया और नदी के सैंपल एकत्र किये। इस सैंपल को NEODYMIUM और Strontium नामक दो आइसोटोप से जांच कर टीम को नदी की उम्र और उसके उद्गम की जानकारी मिली। हिमालय और रण के सैंपल एक जैसे मिले। इस शोध में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान ने भी मदद की थी । संस्थान ने सैटेलाइट फिल्म सहायता से यह समझाने का प्रयास किया कि 10 हजार ईसा पूर्व सरस्वती नदी की स्थिति क्या होगी।
10हजार साल पुराना है सरस्वती नदी का इतिहास
ज्यादातर इतिहासकार भारत के इतिहास की शुरुआत सिंधुघाटी नदी की सभ्यता मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा सभ्यता से मानते थे। लेकिन, जब से सरस्वती नदी की खोज हुई है भारत का इतिहास और भी पुराना हो जाता है। अब इस बात को मान्यता मिल रही है कि यह सिंधुघाटी सभ्यता से भी 10 हजार साल पुराना है। इसका उल्लेख ऋग्वेद की ऋचाओं में भी है, जिनमे कहा गया है कि यह एक ऐसी नदी है जिसने एक सभ्यता और संस्कृति को जन्म दिया।
सरस्वती नदी के विषय पर गहराई से मंथन करने पर यह तो स्पष्ट हो जाता है कि, भारत की सभ्यता और संस्कृति कितनी प्राचीन है। ऋगवेद में ही इस बात का भी उल्लेख है कि संस्कृति, कला, भाषा, ज्ञान विज्ञान,और वेदों की रचना इस नदी के तट पर हुई। सरस्वती ज्ञान और कला की देवी हैं | इसलिये इन्हे सरस्वती नदी कहा गया है |
-विमल श्रीवास्तव