शनिवार विशेष: भगवान शिव को भी शनिदेव की वक्र दृष्टि से बचने के लिए करना पड़ा था ये काम, पढ़ें कथा

शनिवार को विशेष रूप से होती है शनिदेव की पूजा
शनिदेव की वक्र दृष्टि से बचने का शिव ने किया उपाय
शनिवार का दिन शनिदेव (Shani Dev) को समर्पित है और इस दिन उनकी विशेष-पूजा अर्चना की जाती है। नौ ग्रहों में से प्रमुख है शनिदेव और कहते हैं कि ये कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं। तभी तो शनिदेव को न्याय का देवता व कर्मफल दाता भी कहा जाता है। सभी ग्रहों में सबसे धीमी चाल शनिदेव की ही है और इसीलिए इन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है। शनिदेव को शनै: शनै: यानी धीमा चाल वाला भी कहा जाता है।
शनिवार (Saturday) के दिन शनिदेव के मंदिरों में भक्त पूजा-अर्चना करते हैं, तेल चढ़ाते हैं और शनि दोष से मुक्ति पाने के कई उपाय करते हैं। जहां एक ओर कहा जाता है कि शनिदेव न्याय के देवता है वहीं शनिदेव का नाम आते ही लोग डरने लगते हैं क्योंकि हर कोई उनकी वक्र दृष्टि से डरता है और इससे बचने के उपाय करता है।
शनिदेव की वक्र दृष्टि से सबको लगता है डर
नौ ग्रहों में से शनिदेव ही ऐसे ग्रह हैं जिनसे अधिकतर लोग डरते हैं। शनि की साढ़ेसाती तो प्रसिद्ध है ही जो राजा को भी रंक बना देती है। वहीं शनिदेव की वक्र दृष्टि का डर भी लोगों में बहुत है क्योंकि इससे भी भारी नुकसान होता है।
भोलेनाथ ने शनि की वक्री दृष्टि से बचने के लिए किया ये काम
कहते हैं कि शनिदेव हर व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं। वे कभी अच्छे कर्म करने वाले का बुरा नहीं करते। वहीं शनिदेव बुरे कर्म करने वाले को दंड भी देते हैं तभी तो उन्हें दंडाधिकारी भी कहा जाता है। न्याय करते समय शनिदेव कभी भेदभाव नहीं करते हैं। साथ ही वे किसी से प्रभावित भी नहीं होते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव को ही शनि का गुरु बताया गया है। ऐसा कहा जाता है कि शनिदेव को शिव की कृपा से ही दंडाधिकारी चुना गया था। एक बार शिव जी कैलाश पर विराजमान थे। वहां उनके दर्शन करने शनिदेव आए। उन्होंने शिवजी को प्रणाम किया और क्षमा मांगते हुए कहा कि हे भोलेनाथ! मैं आपकी राशि में प्रवेश करने वाला हूं। ऐसे में आप मेरी वक्र दृष्टि से नहीं बच पाएंगे।
तब शिवजी ने पूछा कि वक्र दृष्टि कब तक रहेगी। शनिदेव ने कहा कल सवा पहर तक। शिवजी शनिदेव की वक्र दृष्टि से बचने के लिए अगले दिन हाथी बन गए और फिर पृथ्वी लोक पर भ्रमण करने लगे। फिर कुछ समय बाद जब शिवजी वापस आए तो उन्होंने शनिदेव से कहा कि वो उनकी वक्र दृष्टि से बच गए हैं। यह सुनकर शनिदेव मुस्कुराए और कहा कि आप मेरी दृष्टि के कारण ही पूरे दिन पृथ्वी लोक पर हाथी बनकर भ्रमण कर रहे थे।
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शनिदेव ने शिवजी से कहा कि मेरे ही राशि भ्रमण का परिणाम था कि आप पशु योनी में चले गए थे। यह सुन महादेव बेहद खुश हुए और शनिदेव उन्हें और भी अच्छे लगने लगे।
तो इस तरह भोलेनाथ को भी शनिदेव की वक्र दृष्टि से बचने के लिए पशु तक बनना पड़ा तो हम इंसान क्या चीज हैं।