यूं मकर संक्रांति पर महाराष्ट्र में होता है हल्दी-कुमकुम का आयोजन, जानें महत्व व पूजा विधि

आज 14 जनवरी को मकर संक्रांति का पावन पर्व मनाया जा रहा है
महाराष्ट्र में मकर संक्रांति को होता है हल्दी-कुमकुम का आयोजन
आज मकर संक्रांति (Makar sankranti) का पावन त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह साल का पहला त्यौहार है और आज सुबह 8 बजकर 16 मिनट पर सूर्य देव (Lord surya) ने धनु राशि को छोड़कर मकर में प्रवेश कर लिया है इसीलिए इस त्योहार का नाम मकर संक्रांति पड़ा है। मकर राशि में प्रवेश करते ही सूर्य का उत्तरायण (Uttarayan) भी शुरू हो गया है।
माना जाता है कि मकर संक्रांति से दिन तिल-तिल बढ़ता है। वहीं महाराष्ट्र (Maharashtra) में इस दिन महिलाएं घर में तिलगुड़ और तिलवड़ी बनाती है साथ ही रिश्तेदारों व पड़ोस की महिलाओं को तिलगुड़ देने के साथ ही हल्दी-कुमकुम लगाती है और अपने सुहाग की लंबी उम्र की प्रार्थना करती है।
महाराष्ट्रीयन समाज में इस पर्व का विशेष महत्व है। इस पर्व पर महिलाएं एक-दूसरे को मिट्टी के छोटे से मटकेनुमा बर्तन में चने के होले, तिल-गुड़ के लड्डू, मूंग, चावल, गाजर व बोर मिला कर भर कर देती हैं।
मकर संक्रांति के दिन विवाहित महिलाएं आपस में एक-दूसरे को हल्दी कुमकुम का टीका लगाती है, तिल से बनी मिठाई खिलाती है और मेहमान महिलाओं को सुहाग की चीजें जैसे- बिछिया, पायजब, कंगन, कुंकुम, बिन्दी आदि उपहार में देती है।
'तीळ गुळ घ्या, गोड़ गोड़ बोला' कहकर सभी एक-दूसरे को शुभकामनाएं देती हैं। संक्रांति के दिन नई बहू व नवागंतुक शिशु को तिल के सुंदर गहने पहनाए जाते हैं। वहीं गुजरात में इस दिन बाजरे के रोटले के साथ उन्घिया छत पर बैठकर चटखारे ले-लेकर खाया जाता है।
इस दिन सुबह तिल, मलाई, हल्दी को मिलाकर उबटन करने का अपना अलग ही मजा है। यह उबटन त्वचा को सुंदर व कांतिमय बना देता है। इस दिन दान का विशेष महत्व माना गया है। ब्राह्मणों को भोजन करवाना, दक्षिणा देना, गाय को घास देना, इस पर्व पर विशेष रूप से किए जाते हैं।
पहले हल्दी-कुमकुम सिर्फ महाराष्ट्र , गुजरात, राजस्थान और गोवा में ही आयोजित किये जाते थे लेकिन अब यह देश भर में प्रसिद्द हो चुका है। ऐसा कहा जाता है कि हल्दी कुमकुम मनाने की शुरुआत पेशवा साम्राज्य के दौरान हुई। उस जमाने में पुरुष युद्ध लड़ने चले जाते थे और सालों तक घर नहीं आते थे।
ऐसे में महिलाएं घर से निकल नहीं सकती थीं इसलिए हल्दी कुमकुम के बहाने आस- पड़ोस की औरतों और सहेलियों को अपने घर बुलाती थी। उनके माथे पर हल्दी-कुमकुम लगाकर उनका स्वागत करती थीं। इस दौरान वो उपहार में कपड़े, इत्र व श्रृंगार का सामान भी भेंट में देती थीं।
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इस दिन बच्चों में भी विशेष उत्साह देखा जा सकता है। बच्चे हो या बड़े सभी मकर संक्रांति पर पतंगबाजी का आनंद लेते हैं। पूरा आकाश नीले-पीले, लाल, हरे, पतंगों से सराबोर दिखाई देता है। इस प्रकार यह त्योहार मिलने मिलाने तिल-गुड़ खाने और सामाजिकता का त्योहार है। हल्दी कुमकुम के इस त्योहार का उत्साह खास तौर पर महाराष्ट्र में अधिक देखा जा सकता है।