Kartarpur Corridor : क्या है करतारपुर का इतिहास, जानिए उससे जुड़ी अहम बातें

नई दिल्ली : सिखों का सबसे पवित्र स्थान करतारपुर करीब 20 साल बाद सूर्खियों में छाया हुआ है। करतारपुर कॉरिडोर बनने से भारतीय सिख समुदाये के लोग अब आसानी से गुरु नानक देव की इस स्थली तक पहुंच सकते हैं। आइए जानते हैं करतारपुर से जुड़ी कुछ खास और अहम बातें।
करतारपुर साहिब के बारे में पहली बार साल 1998 में भारत ने पाकिस्तान से बातचीत की थी और उसके 20 साल बाद ये मुद्दा फिर गर्म है। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त यह गुरुद्वारा पाकिस्तान में चला गया था। तभी से हिंदुस्तान से जाने वाले भक्तों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान में स्थित श्री करतारपुर साहिब को जाने वाले करतारपुर कॉरिडोर का शनिवार को उद्घाटन करेंगे। साल 2018 नवंबर में, भारत और पाकिस्तान करतारपुर गलियारे को स्थापित करने को लेकर सहमत हो गए थे।
यह गलियारा पंजाब के गुरदासपुर जिले में स्थित डेरा बाबा नानक गुरुद्वारे को करतारपुर में स्थित दरबार साहिब से जोड़ेगा। इस गलियारे से भारतीय सिख यात्री बिना वीजा के सिर्फ परमिट लेकर करतारपुर साहिब जा सकते हैं। इसकी स्थापना 1522 में सिख पंथ के संस्थापक गुरु नानक देव ने की थी।
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करतारपुर वो स्थान है, जहां सिखों के पहले गुरू श्री गुरुनानक देव जी ने अपने जीवन के आखिरी 17-18 वर्ष गुजारे थे और सिख समुदाय को एकजुट किया था। करतारपुर में जिस जगह गुरुनानक देव की मृत्यु हुई थी वहां पर गुरुद्वारा बनाया गया था।
यह गुरुद्वारा शकरगढ़ तहसील के कोटी पिंड में रावी नदी के पश्चिम में स्थित है। गुरुद्वारा सफेद रंग के पत्थरों से निर्मित है, जो देखने में बेहद ही खूबसूरत नजर आता है।