नीतीश के लिए बेहद अहम हैं ये पांच बातें, सरकार में बने रहने के रखना होगा ध्यान

पटना : 2020 में बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जरूरत से ज्यादा आशान्वित हैं। भले ही सीएम साहब ने यह दावा किया है कि इस बार एनडीए 200 से भी ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करके एक बार फिर से सरकार बनाएगी, लेकिन उनका यह सपना तब पूरा हो सकता है, जब राजनीतिक समीकरण कुछ इस तरह से हों और भाजपा व जदयू के नेताओं में हर एक मुद्दे पर एक बेहतर तालमेल हो।
इसके साथ साथ इन पांच समीकरणों पर भी भाजपा-जदयू-लोजपा गठबंधन को ध्यान रखना होगा....
प्रशांत किशोर न लड़ें या न लड़ाएं चुनाव
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) 2014 जब नरेन्द्र मोदी के साथ रहे तो केन्द्र में भाजपा की सरकार आई और जब 2015 नीतीश कुमार के साथ आए तो मोदी जी के पूरी ताकत झोंकने व साम-दाम-दंड-भेद जैसे सभी हथकंडों को चकनाचूर करके बिहार में नीतीश सरकार को सत्ता दिलवाई। हालांकि तब कांग्रेस व राजद के सुप्रीमो लालू यादव भी नीतीश के पाले में खड़े थे। पर अब हालात बदल चुके हैं। जदयू व नीतीश कुमार के साथ साथ भाजपा के हर हथकंडे को जानने वाले पीके अब इनके खिलाफ दिख रहे हैं और नई राजनीति के लिए एक अभियान छेड़ रखा है। माना तो यही जा रहा है कि प्रशांत किशोर अगले कुछ महीनों में अपने आप को राजनीतिक रूप से सशक्त करने के बाद अपनी चुनावी पारी की घोषणा करेंगे। अगर ऐसा हुआ तो नीतीश कुमार का सपना चकनाचूर हो सकता है।
लोजपा से न हो सीट बंटवारे को लेकर टकरार
लोजपा के नेता रामविलास पासवान राजनीतिक हवा को भांपने के बाद पलटी मारने में कुछ चौधरी अजीत सिंह जैसे हैं। जहां लाभ व सत्ता दिखती है, वहां किसी न किसी बहाने खड़े होते दिखने लगते हैं। अगर बिहार विधानसभा की सीटों के बंटवारे के दौरान रामविलास पासवान को भाजपा व जदयू अपने साथ नहीं रख पायी तो वह ज्यादा सीटों के लालच में किसी न किसी बहाने एनडीए छोड़ने में देरी नहीं करेंगे। अगर कुछ ऐसा हुआ तो महागठबंधन के नेता भी इनको अपने पाले में करने की जी-जान से कोशिश करेंगे। अभी कुछ दिन पहले चिराग पासवान भी अपनी यात्रा पर निकल चुके हैं ताकि बिहार का मिजाज जान सकें और आगे की राजनीतिक रणनीति बना सकें।
कांग्रेस व महागठबंधन में पड़ जाए दरार
सीटों के बंटवारे को लेकर अभी महागठबंधन में बात साफ नहीं हुई है और हो सकता है कि कांग्रेस ज्यादा सीटें लेने के खातिर राजद व अन्य दलों पर दबाव बनाए। अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस व महागठबंधन की राहें अलग हो सकती हैं। अगर ऐसा हुआ तो भाजपा जदयू के लिए अच्छा होगा व वोटों के बंटवारे का एनडीए को लाभ मिलेगा।
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भाजपा नेता न दें दिल्ली जैसे अनर्गल बयान
बिहार में कुछ ही महीने में चुनाव की घोषणा होने वाली है और दिल्ली में बयान बहादुरों का झटका भाजपा खा चुकी है। ऐसे में नीतीश कुमार व नरेन्द्र मोदी के लिए यह एक बड़ी चुनौती होगी कि उनके बड़बोले नेता कोई अनर्गल बयान न दें जिससे एनडीए को नुकसान हो। गिरिराज किशोर जैसे नेता इसी प्रदेश से आते हैं और वे कब, कहां और क्या बोल जाते हैं इसका किसी को अंदाजा नहीं होता है। इसी तरह की बयानबाजी से भाजपा को लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र व झारखंड मे सत्ता गंवानी पड़ी है व दिल्ली में सरकार पाने का सपना भूलना पड़ा है।
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मोदी जी व नीतीश जारी कर दें बिहार के विकास का रोड मैप
बिहार के विकास के लिए बार बार रोड मैप की बात कहने वाले प्रशांत किशोर को हासिए पर लाने के लिए मोदीजी व नीतीश कुमार को एक रोड मैप बताना होगा तभी बिहार की जनता इन पर भरोसा करेगी। नहीं तो, नीतीश सरकार की केन्द्र सरकार के यहां पेंडिंग छोटी छोटी बातों को बिहार में बड़ा मुद्दा बनाया जाएगा। चाहे बिहार को पैकेज या विशेष राज्य का दर्जा देने की बात हो या पटना विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनाना। इनको चुनाव में उठाकर विरोधी दोनों नेताओं की टांग खींचेंगे।