सोरहिया व्रत के समापन पर विधि-विधान से करें मां लक्ष्मी की पूजा, धन-धान्य से भर जाएंगे भंडार

माता लक्ष्मी के सोरहिया व्रत का समापन 22 सितंबर दिन रविवार को है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से महालक्ष्मी का सोरहिया व्रत (16 दिन का महापर्व) प्रारंभ हुआ था, जिसका समापन रविवार को होगा। इस दिन माता लक्ष्मी की दिवाली की तरह ही पूजा करने का विधान है।
कुछ लोग इस व्रत के प्रारंभ से ही माता लक्ष्मी की पूजा व व्रत करते हैं वहीं जो लोग बाकी दिन व्रत नहीं रख पाए हैं, वे रविवार को महालक्ष्मी का व्रत रख सकते हैं। इससे भी उन पर माता लक्ष्मी की कृपा बनेगी, जिससे सुख, समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होगी।
ये है माता लक्ष्मी के सोरहिया व्रत का महत्व
माता लक्ष्मी सुख-समृद्धि प्रदान करती है और माना जाता है कि सोरहिया व्रत करने से दरिद्रता दूर होती है। धन और वैभव की देवी माता लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करने पर सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
इतना ही नहीं, उनकी पूजा से श्रीहरि भगवान विष्णु भी प्रसन्न होते हैं। भक्तों को माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलने के साथ ही भगवान विष्णु की भी कृपा प्राप्त होती है।
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पितृपक्ष की अष्टमी पर चांदी-सोना खरीदने की परंपरा
कुछ लोग इस तिथि पर चांदी का या सोने का छोटा सा हाथी भी खरीदते हैं। कुछ लोग इस दिन आभूषण भी खरीदते हैं। इस तिथि पर खरीदे गए हाथी की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ की जाती है।
इस संबंध में मान्यता है कि पितृ पक्ष की अष्टमी तिथि पर की गई लक्ष्मी पूजा से घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है। धन संबंधी कामों में सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। इस तिथि पर लोग विवाह आदि शुभ कामों के लिए आभूषण भी खरीदते हैं।
शास्त्रों में उल्लेख है कि महालक्ष्मी व्रत के दौरान द्वापर युग में महारानी कुंती ने अपने पुत्र भीम के माध्यम से राजा इंद्र के यहां से ऐरावत हाथी मंगवाकर लक्ष्मी का पूजन किया था। तब से लक्ष्मीव्रत के दौरान हाथी पूजन की परंपरा विद्यमान है।
यूं विधि-विधान से करें महालक्ष्मी की पूजा
संध्याकाल में घर के पूजाघर में एक चौकी की स्थापना करें। उसके ऊपर लाल कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर केसर मिले चन्दन से अष्टदल बनाएं।
अष्टदल पर चावल रखकर उसके ऊपर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। स्थापित कलश के पास हल्दी से कमल बनाकर उसके ऊपर माता लक्ष्मी की मूर्ति की स्थापना करें।
मिट्टी के हाथी की प्रतिमा उसके ऊपर विराजित कर उसको सोने के गहनों से सजाएं। इस समय नया खरीदा गया सोना हाथी पर रखने से पूजा का विशेष लाभ मिलता है।
अपने सामर्थ्य के अनुसार मिट्टी या सोने, चांदी का हाथी खरीदकर लाया जा सकता है। चांदी के हाथी का महत्व सोने के हाथी से ज्यादा होता है इसलिए कोशिश करें कि पूजा के लिए चांदी के हाथी की प्रतिमा घर पर लेकर आएं।
देवी महालक्ष्मी के समक्ष श्रीयंत्र रखें और उसके बाद कमल के फूल और दूसरे सुगंधित लाल फूलों से महालक्ष्मी का पूजन करें। साथ में सोने-चांदी के सिक्के पूजा में रखें। स्वादिष्ट मिठाई और ऋतुफलों का माता को भोग लगाएं।
माता के अष्टस्वरूपों का ध्यान करें और देवी के अष्टस्वरूपों की कुमकुम, गुलाल, अबीर, अक्षत, हल्दी, मेंहदी, वस्त्र और सुगंधित फूल समर्पित कर पूजा करें।
माता के समक्ष सुगंधित धूपबत्ती जलाए और गाय के घी का शुद्ध दीपक लगाएं। देवी महालक्ष्मी की आरती करें।
पूजास्थल पर बैठकर श्रीसूक्त, कनकधारा स्त्रोत, महालक्ष्मी स्त्रोत में से किसी एक का या संभव हो तो सभी का पाठ करें।
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आप इन मंत्रों का जाप भी कर सकते हैं ....
- श्री लक्ष्मी महामंत्र: ॐ श्रीं क्लीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा।।
- श्री लक्ष्मी बीज मन्त्र: ॐ श्रींह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मी नम:।।
मंत्र जाप के बाद कपूर से माता की आरती करें। विधि विधान से पूजा करने पर माता लक्ष्मी आप पर प्रसन्न होंगी।
श्री लक्ष्मी महामंत्र के जाप से धन, दौलत और वैभव को स्थिरता मिलेगी और बीज मन्त्र आपके भाग्योदय में सहायक होगा।